मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

पिंजरा के सुवा, लेखक श्री एम् एल ठाकुर दल्लीराजहरा


कानून बेवस्था होगे फेल,
जंगल मा होगे रक्सा राज।
फुग्गा फुलावे बजावे गाल,
बैरी -हजयपट्टा मारे जइसे बाज।।
कई कोरी गांव के लोगन ला,
बसाइस सहत सिविर मा।
गांव छुटे परिवार उजड़गे,
बसिन्दा सोचत हे सिविर मा।।
खार खेत सब होगे परिया,
माल मवेसी जंगल म जाय।
ए पार नरवा ओ पार -सजय़ोंड़गा,

दिन रात जी हा गांव मा जाय।।
लरा जरा के खुब सुरता आथे,
चिरई होतेव उड़ के जातेव।
तिहार बार के सुन्ना लागथे,
तिजा नवई लेवा के लातेव।।
बेटी के नान नान नोनी बाबु,
बड़ उतययिल ओमन हाबय।
बरजय बास मानय नहीे,
घेरी बेरी नरवा म जावय।।
का गलती करे हन भगवन,
सिविर मा हमला डारे तय हर।
तन मन मा हमर बेड़ी बंधांगे,
का के सजा देवत हस तेहा।।
वरदी वाला डंडा लहरावे,
बात बात म वो खिसयाथे।
काकरो सुने के आदत नईये,
टांट भाखा सुन माथा पिराथे।।
हमला देखके बन के बघवा,
मुड़ी गड़ियाय पूछी ओरमाय।
टेड़गी धारी ये पुलिसिया मन,
धमकी देवे नी सरमाय।।
चिरई चुरगुन ला उड़त देख,
मन हा उड़थे बादर मा।
कुहू कुहू कोयलिया बोले,
थाप लगातेव मांदर मा।।
हइरना मिरगा नरतन करय,
मूरली बजावे पड़की मैना।
फुदक फुदक के भठलिया नाचे,
कमर मटकावे बन कैना।।
भर्री मा बोतेव कोदो कुटकी,
मईंद खार म लारी बनातेव।
मड़िया जोंधरा जुवार बाजरा,
सूवा रमली दूर भगातेव।।
आमा अमली अऊ चार तेंदू,
सबके अब्बड़ सूरता आथे।
महुवा फुल बिने बा जातेंव,
बांस करील के सुरता आथे।।
चार चिरौंजी बजार हाट मा,
सहेब सुदा मन सूब बिसाथे।
दूनो परानी संग मा जाथन,
नी जाब मा घरवाली रिसाथे।।
सिविर बंधन तन ला बांधे,
मन तरंग मा उड़ि उड़ि जाय।
कब तक हम बंधाके रहिबो,
सूवा पिंजरा मा असकटाय।।
हमर सुनइया कोनो नइये,
लगथे हमला जग अंिधयार।
लाल लाल आंखी सबो दिखाथे,
कहां से मिलही हमला पियार।।
बन मा घुमय बन मानुस,
दादा दीदी ओमन कहलाय।
घर म जबरन आके घूसय,
पेज पसिया सबो -सजय-हजय
खटिया जठना मा वो सूतय,
मुहाटी मा हमला -सजय-हजय
कुकरा बासत घर से निकले,
जावत बेरा घुब धमकाय।।
पुलिस वाला आवे च-सजय़ती बेरा,

बांध के लाने पुलिस थाना।
गारी बखाना खुब देवय,
लात घुसा के रहय पीना खाना।।
दलम वाला हमर दार दरे,
पुलिस वाला करय पिसान।
जाता मा हम पिसावत हन,
नी बाचय थोरको निसान।।
धरती वाला सब आंखी मंूदे,
हमला सब कोई डरवाय।
प्रभू घर मा देर हे अंधेर नहीं,
तेहा काबर चुप मिटकाय।।

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