मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

हमर गाव


शहर मा तुम पढ़थो रहिथो,

भुला जथो गांव गवंइ ला।

बेरा बखत मा आवत रहव,

सूरता करहू तीजा नवर्इ्र ला।।

तिहार बार के बनथे इहां,

आनी बानी के कुत्तुर कलेवा।

सूजी हलवा मड़िया के पकवा,

बरा सोहांरी पपची कलेवा।।

खूरमी ठेठरी सुवाद हे आला,

अइरसा भजिया लार टपकाय।

चीला अंगाकर गरमेगरम,

चटनी संग गजब सुहाय।।

बिहनिया खाथन बासी चटनी,

रहय प्रोटिन के अजब भंडार।

बासी खवइया रहिथे कड़मस,

नी देखे वो हा रक्सहूं भंडार।।

जीर्रा चटनी अउ पटवा भाजी,

लइका सियान सबो ललचाय।

जरी चेंच खोटनी चरोंटा,

बासी भात उपराहा खवाय।।

जिमी कांदा सब्जी के राजा,

मन भर खाव सेहत बनाय।

मड़िया पेज के गुण हे आला,

झांज झोला बदन बचाय।।

कोचई पाना बेसन मांगय,

दही मसाला सबो सुहाय।

उल्हवा उल्हवा बोहार भाजी,

आमा अमली संगी बनाय।।

फरा गूंझिया सुंदर कलेवा,

करी लाड़ु खूबेच सुहाय।

मूर्रा लाड़ू दिखब मा जबरा,

पानी पियो भूख भगाय।।

खीरा कलिन्दर बात निराला,

मुंह मा डालो पानी ओगराय।

भूख पियास ल दूर भगावे,

झोला गरमी ला खूब चमकाय।।

कांदा भाजी संग चना के दार,

डबका बघरा सबो सुहाय।

कोलयारी भाजी खूबेच मिठाथे,

एकर गुण आयुरवेद बताय।।

कुम्हड़ा बरबट्टी के भाजी,

चना दार ल संगवारी बनाय।

सास बहू के झगरा भगावे,

दूनों के मया खूबेच बढ़ाय।।

कुवंर भाजी मूंग उरदा के,

बहुरिया सुंदर बघवा लगाय।

सास ससुर मन चरचा करय,

नोनी के जेवन खूब खवाय।।

चना लाखड़ी के बात निराला,

सोंदे सोंद मा खूबेच खवाय।

किलिर कालर लइका करय,

रंधइया मंुह ताकत रह जाय।।

बर्रे भाजी अउ फूटू रमकलिया,

मुंह के सुवाद भिनगे बढ़ाय।

तोरइ डोड़का गुत्तूर गुत्तूर,

बुढ़वा सियान ला खूब सुहाय।।

तरिया नदिया घाट घठौंदा

संगी जवंहरिया सबो मिलाय,

तउंरे डूबके अउ बतियाय,

सियान बरजय कहां बिलाय।।

खार खेत हा सोना उगले,

धान गहूं खेत मा लहराय।

रहेर चना अउ मूंग उरदा,

झुमर झुमर मन बहला।।

दिन मा सूरज रात मा चंदा,

कमइया ला रद्दा बताय।

खेत कोठार मा मिले कमइया,

मेहनत करे पसीना बोहाय।।

रात मा चांदनी चले बयार,

थकाहारा करे रथिया बिसराम।

तिहार बार के नाचय गावय,

काम बूता ला देवे विराम।।

लोक रंग मा डूबय लोगन,

गांव इन्द्र लोक बन जाय।

इन्द्र धनुषी छटा बिखेरे,

इन्द्र लोक घलो सरमाय।।

चिरई चिरगुन रूख राइ मा,

संझा बिहनिया मुरली बजाय।

गलियन मा लइका खेलय,

किलकारी सुन दुख बिसराय।।

बड़े बिहनिया कुकरा जागय,

कुकड़ंू कू सायरन बजाय।

कमइया किसान जठना छोड़े,

कुकरा बासत हो जाय।।

संझा बेरा बरदी ओइले,

दुहानू गाय हुमरत आय।

घांटी घुम्मर मन ला भावे,

बृन्दाबन जस गांव सुहाय।।

देवारी बर गउ माता के पूजा,

कलेवा खिचरी भोग लगाय।

संझा बेरा गोरधन खुंदावे,

गांव हमर गोकुल बन जाय।।

यदुवंशी भाई नाचय गावय,

कृष्ण कन्हैया परगट हो जाय।

गोप बाला राधा बन जावे,

वो सुख बरनय नी जाय।।

गांव के धरती पावन धरती,

मधुर शीतल जल बरसाय।

सुबह शाम चले मखइया,

तन मन हा अति हरसाय।।

रथिया मोतियन के बरसा,

बड़े सबेरे परगट हो जाय।

बनझार डारा पाना ला,

मोती शबनम दुनो नहलाय।।

गांव मा बसत हे माटीपूत,

सोंधी गंध महमहावत हे।

फुल फुलवारी के नाता रिसता,

चमन खिलखिलावत हे।।

भइया भउजी, अऊ कका काकी,

पावन रिसता मनावत हे।

पूरा गंाव परिवार जस लागय,

देख देख शिव मुसकावत हे।।

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27 सितम्बर 2008 बिजली बाई

गांव मा रहिथे मिटमिटही टुरी,

बिजली बाई ओकर नाम।

दूर देश ले आथे ओहा,

जानथे सब बुता काम।।

जइसे तियारबे सबो करही,

हाबे बड़ चतुरा हुसयार।

गरीब अमीर सबघा जावे,

ओला मिलथे सबके पियार।।

दिन मान धुंधरासी लागे,

रथिया आंखी चमकय।

बोली भाषा समझय नहीं,

इसारा मा खुब मटकय।।

घर दुवार खार खेत मा,

पानी भरना ओकर काम।

छेड़खानी ल सहय नहीं,

तोला कर दीही बदनाम।।

हावय चकचकही बानी के,

गिजिर गिजिर करत रहिथे।

देहें पांव हावय कड़मस,

घाम पानी सबो ल सहिथ्ेा।।

रिंगी चिंगी कपड़ा पहनय,

तन बदन हा दमकत हे।

बेनी जस लहरावय नोनी,

चाल ओकर चमकत हे।।

टीबी अस्तरी घलो चलाय,

रंधइया ल करय मदद।

थकासी ल जानय नहीं,

ओ रहिथे हरदम गदगद।।

पढ़इया मन ला बड़ बिजराथे,

मिलथे ओला गारी बखाना।

दिन अऊ रात धूकना धूकय,

असीस देवे लइका सियान।।

दिन रात खटथे बूता मा,

मरवा पिरावे न तरवा।

जब ओला ओतयासी लागे,

लोगन झांके तरिया नरवा।।

बर बिहाव मा अब्बड़ सम्हरथे,

खूबेच मिटमिटावत रहिथे।

बर बधू ला छोड़ के लोगन,

इ हिच ला देखत रहिथे।।

बिहदरा बेरा मा बिजली,

रहिथे खूब मसती मा।

झूमर झूमर गाना गवाथे,

सोर मचाथे बसती मा।।

लोगन ला खूबेच भड़काथे,

हावय चुगलहिन बानी के।

भड़कौनी मा आके लोगन,

करनी करथे आनी बानी के।।

दिन रात ये हा सेवा बजाथे,

करय मेहनत मन लगा के।

टांट भाखा सहय नहीं,

दम लिही जान नंगा के।।

मालिक के मन ला टमड़ के,

कहिथे पगार बढ़ादे मोर।

बजार हाट मा भाव बढ़गे,

खरचा मा पड़े खूबेच जोर।।

आफिस दफ्तर मा करे अंजोर,

छितका कुरिया घलो सुहाय।

खोर गली मा घलो घूमे,

कल कारखाना मा इतराय।।

मेला मड़ई मा गिंजरे फिरे,

होटल दूकान मा अंड़ियाय।

चउराहा मा टेªफिक संभाले,

चलइया ल रद्दा बताय।।

शहर देखे बर बड़ पुचपुचीही,

रेलगाड़ी मा करय सफर।

जंगल पहाड़ सब ला घूमे,

नी खोजे अपन हम सफर।।

लरा जरा एकर अब्बड़ हावे,

संगवारी बनावे तत्काल।

जब मइके रही भरे बोजे,

बिजली के घर मा सुकाल।।

बिजली जस कमइया पा के,

सबला मिलथे खूबेच ओत।

ओकर बिना जग अंधियार,

रहय सदा बिजली के जोत।।

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पिंजरा के सुवा, लेखक श्री एम् एल ठाकुर दल्लीराजहरा


कानून बेवस्था होगे फेल,
जंगल मा होगे रक्सा राज।
फुग्गा फुलावे बजावे गाल,
बैरी -हजयपट्टा मारे जइसे बाज।।
कई कोरी गांव के लोगन ला,
बसाइस सहत सिविर मा।
गांव छुटे परिवार उजड़गे,
बसिन्दा सोचत हे सिविर मा।।
खार खेत सब होगे परिया,
माल मवेसी जंगल म जाय।
ए पार नरवा ओ पार -सजय़ोंड़गा,

दिन रात जी हा गांव मा जाय।।
लरा जरा के खुब सुरता आथे,
चिरई होतेव उड़ के जातेव।
तिहार बार के सुन्ना लागथे,
तिजा नवई लेवा के लातेव।।
बेटी के नान नान नोनी बाबु,
बड़ उतययिल ओमन हाबय।
बरजय बास मानय नहीे,
घेरी बेरी नरवा म जावय।।
का गलती करे हन भगवन,
सिविर मा हमला डारे तय हर।
तन मन मा हमर बेड़ी बंधांगे,
का के सजा देवत हस तेहा।।
वरदी वाला डंडा लहरावे,
बात बात म वो खिसयाथे।
काकरो सुने के आदत नईये,
टांट भाखा सुन माथा पिराथे।।
हमला देखके बन के बघवा,
मुड़ी गड़ियाय पूछी ओरमाय।
टेड़गी धारी ये पुलिसिया मन,
धमकी देवे नी सरमाय।।
चिरई चुरगुन ला उड़त देख,
मन हा उड़थे बादर मा।
कुहू कुहू कोयलिया बोले,
थाप लगातेव मांदर मा।।
हइरना मिरगा नरतन करय,
मूरली बजावे पड़की मैना।
फुदक फुदक के भठलिया नाचे,
कमर मटकावे बन कैना।।
भर्री मा बोतेव कोदो कुटकी,
मईंद खार म लारी बनातेव।
मड़िया जोंधरा जुवार बाजरा,
सूवा रमली दूर भगातेव।।
आमा अमली अऊ चार तेंदू,
सबके अब्बड़ सूरता आथे।
महुवा फुल बिने बा जातेंव,
बांस करील के सुरता आथे।।
चार चिरौंजी बजार हाट मा,
सहेब सुदा मन सूब बिसाथे।
दूनो परानी संग मा जाथन,
नी जाब मा घरवाली रिसाथे।।
सिविर बंधन तन ला बांधे,
मन तरंग मा उड़ि उड़ि जाय।
कब तक हम बंधाके रहिबो,
सूवा पिंजरा मा असकटाय।।
हमर सुनइया कोनो नइये,
लगथे हमला जग अंिधयार।
लाल लाल आंखी सबो दिखाथे,
कहां से मिलही हमला पियार।।
बन मा घुमय बन मानुस,
दादा दीदी ओमन कहलाय।
घर म जबरन आके घूसय,
पेज पसिया सबो -सजय-हजय
खटिया जठना मा वो सूतय,
मुहाटी मा हमला -सजय-हजय
कुकरा बासत घर से निकले,
जावत बेरा घुब धमकाय।।
पुलिस वाला आवे च-सजय़ती बेरा,

बांध के लाने पुलिस थाना।
गारी बखाना खुब देवय,
लात घुसा के रहय पीना खाना।।
दलम वाला हमर दार दरे,
पुलिस वाला करय पिसान।
जाता मा हम पिसावत हन,
नी बाचय थोरको निसान।।
धरती वाला सब आंखी मंूदे,
हमला सब कोई डरवाय।
प्रभू घर मा देर हे अंधेर नहीं,
तेहा काबर चुप मिटकाय।।

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प्रदेश मे सार्वजानिक वितरण प्रणाली ठप्प :राजनीतिक फायदे के लिए सा वि प्र का दोहन

प्रदेश मे सार्वजानिक वितरण प्रणाली पूर्णत ठप्प हो गई है जिस तरह से उचित मूल्य दुकानों को राजनीतिक फायदे के लिए प्रदेश मे नीतिया बनी गई उससे वह दिन दूर नही जब पुरी व्यवस्था ही ठप्प हो जाए, कभी नामा तो कभी तेल या कई रंग बिरंगे कार्ड से लोगो को लुभाने के लिए प्रदेश मे प्रयोग किए गए किंतु आज इन दुकानों मे पड़े हुए तेल ग्रहको का बाट जो रहे है फिर भी सरकार जबरिया बिना मांग के भी दुकानों को माल दिए जा रही है प्रदेश मे जिस तरह से बी पी एल परिवारों की संख्या बधाई जा रही वह भी चिंतनीय है राजनितिक फायदों के लिए अनाप शनाप कार्ड बातें गए है ओउर मिट्टीतेल से वाहन चलाये जा रहे.

लोक सभा चुनाव मे दुर्ग से कौन ?

आगामी लोक सभा चुनव मे दुर्ग से किसी युवा चेहरे को प्र्ताशी बनया जाएगा या फिर पुराने चेहरे फिर से मैदान मे होंगे? यह इस बात पर निर्भर करता है की विभिन्न दलों मे विधान सभा चुनव मे राजनीतिक समीकरण बदला हुआ है दुर्ग मे विधान सभा चुनव मे कांग्रेस से अरुण वोरा जी का प्रदर्शन ने लोगो मे उम्मीद की एक किरण जगा दी है जिस तरह से विपरीत परिस्थितियों मे अरुण वोरा जी ने विधान सभा चुनव मे मतदाताओ का समर्थन हासिल किया है वह काबिले तारीफ़ है मात्र कुछ सौ के अन्तर से यह सीट कांग्रेस से निकल गई लेकिन पिछली खाई को पाटने मे कांग्रेस जन सफल रहे । अरुण वोरा जी का जनाधार जिस तरह से विगत वर्षो मे बढ़ा है उससे निश्चित ही कांग्रेस के कुछ नेताओ को सुकून नही दे रही । अरुण वोरा जी ने दुर्ग ओउर छत्तीसगढ़ की राजनीतिक जमीन को एक साफ़ सुथरे युवा नेता की छवि प्रस्तुत की है ओउर उन नेताओ मे शुमार हो गए है जो कथनी मे नही करनी मे विश्वाश करते है राजनीतिक जमीन पर अरुण वोरा जैसे बेदाग छवि का मिलना कोंगरेसस के लिए एक अतिरिक्त लाभ है जो छत्तीसगढ़ की राजनीतिक जगत के लिए शुभ संकेत है। अरुण वोरा जी ने छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा मे बुद्धजीवी वर्ग सहित दलित मजदुर किसान वर्ग मे अलग छवि प्रस्तुत करके यह दिखा दिया है की वे परम्परा गत राजनीती से हटकर कुछ अलग करने का साहस रखते है अपने युवा karykartao को भी अरुण वोरा जी ने leek से अलग हटकर काम करने hetu prerna प्रस्तुत किया है ओउर सिर्फ़ naarebaji से हटकर जन aakaanchhao को mukhrit करने मे सफल रहे है।

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