गुरुवार, 10 जुलाई 2008

भारत का अमेरिका के साथ परमाणु करार सही या ग़लत ?

भारत सरकार द्वारा अमेरिका के साथ परमाणु मसलो पर अमेरिका के साथ करार के बारे आपकी क्या राय है? क्या यह देश हित मे है?क्या भारत के परमाणु उर्जा के संवर्द्धन के लिए यह आवश्यक है? इस पर आपका अपना विचार क्या है? आपका विचार आमंत्रित है।
टिप्पणियाँ:
सर्वप्रथम तो ब्लांग के लिये बधाई, चुंकि आपके ब्लांग पर पहली बार आया हु अत: बधाई के साथ इस बात का विश्वास दिलाता हु कि समय समय पर अपने मत से अवगत कराता रहुंगा। मेरे संबंध मे अधिक जानकारी के लिये आप http://www.congressraipur.blogspot.com पर जा सकते है परमाणु करार पर अपने विचार मै पहले तो अपने उपरोक्त ब्लांग मे व्यक्त करता पर अब आपके इस ब्लांग पर करना पसंद करुंगां ।
परमाणु करार देश मे हरित क्रांन्ति, श्वेत क्रान्ति और आई टी क्रान्ति के पश्चात उर्जा क्रान्ति की दिशा मे एक कदम है, जो लोग विरोध कर रहे है उनके विषय मे भी कुछ कहना चाहिये पर आप ने परमाणु करार देश हित मे है या नही के संदर्भ मे ही कहा है अत: इससे बहार जाने का मेरा कोई इरादा नही है। आप जानते है कि देश मे विद्युत संकट की स्थिति कितनी गंभीर है, कई राज्यो मे तो १५ घंटॊ की बिजली कटौती हो रही है और बिना बिजली के क्या परेशानिया है किसी को बताने की जरुरत नही है। अब नाभिकीय उर्जा के लिये हमारे परमाणु संयंत्र अपनी क्षमता के २०% से भी कम से कार्य कर रहे है और इसका मुख्य कारण युरेनियम की कमी है इस करार से ना सिर्फ यह दुर होगी बल्कि ऎसी तकनीक भी मिलेगी जिससे हम थोरियम से जिसका कि विश्व मे दुसरे नंबर का भंडार हमारे पास है से पुर्ण क्षमता से बिजली बनाई जा सकती है यह विचित्र है कि जब नाभिकीय ऊर्जा के मामले में जमीनी सच्चाई ऐसी हो तब कुछ लोग भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के विरोध पर अडे है उन्ही लोगो के इस दावे से सभी सहमत होंगे कि उन्होने ही भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाभिकीय हथियार संपन्न देश के रूप में स्थापित किया। भारत-अमेरिका परमाणु संधि न केवल नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह के प्रतिबंधों से हमें छूट प्रदान करेगी, बल्कि यूरेनियम और नाभिकीय रिएक्टरों के आयात का रास्ता भी खोल देगी। ऐसा होने पर ही भाभा परमाणु कार्यक्रम को बचाया और आगे बढ़ाया जा सकेगा। संधि न हो पाने की दशा में हमें अपने नागरिक नाभिकीय कार्यक्रम के दस हजार मेगावाट क्षमता तक सीमित रह जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। निश्चित ही विरोधीयो का यह उद्देश्य नहीं हो सकता। फिर वे क्यों उस संधि का विरोध कर रहे हैं जो भारत को नाभिकीय प्रतिबंधों से आजादी प्रदान करने वाली है?
 
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