मंगलवार, 10 जून 2008

चुनावी वादों पर अमल क्यो नही

हाल के दिनों मे यह देखने मे आया है कि नेता गण चुनाव के समय जोर शोर से वादे कर जाते है किंतु जब वादे पूरे करने की बारी आती है तो मुकर जाते है,यह कभी २ गले की हड्डी का फाँस भी बन जाता है जैसे अभी रानी साहिबा को हो गया है,गुर्जर समुदाय को अ जजा समुदाय मे शामिल करने का वचन देकर उन्होंने पूरे देश मे अशांति का सूत्रपात कर दिया है और कितनी ही मासूम जाने चली गई,चुनाव जीतने के लिए अनाप शनाप बोलने की रीति पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए और चुनावी घोषणापत्रों को लागू करना पूरा करना अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि नेताओ की बेसिपैर बोलने की आदत पर लगाम लगाया जा सके।
छत्तीसगढ़ मे ही चुनाव के पूर्व वर्तमान कर्ताधार्ताओ ने बेरोजगार युवा युवतियों को ५०० रु बेरोजगारी भत्ता,हर आदिवासी परिवार को गाय,दाल भात केन्द्र ,लघु सीमांत किसानों को कर्जा माफ़,प्रत्येक आदिवासी परवर के एक व्कती को नोअकरी ,भू भटक की समाप्ति और न जाने कितने वादे किए थे किंतु किसी भी वादे को अस्लिजामा नही पहना सके कुछ करनी की कोशिश भी कि तो सिर्फ़ दिखावटी.

खसरा, बी-वन तथा नक्शे की नि:शुल्क प्रतिलिपियां वितरण की योजना
छत्‍तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा के अनुरूप किसानों को उनकी जमीन का खसरा, बी-वन तथा नक्शे की नि:शुल्क प्रतिलिपि वितरण की कार्रवाई पूरे प्रदेश में चल रही है। इस योजना के तहत पिछले माह किसानों को उक्त तीनों महत्वपूर्ण दस्तावेजों की 93 लाख 10 हजार 370 प्रतिलिपियां वितरित की गई। इनमें 59 लाख 70 हजार 89 खसरा, 22 लाख 21 हजार 618 बी-वन तथा ग्यारह लाख 18 हजार 663 नक्शे की प्रतिलिपियां शामिल हैं। लेकिन उक्त दस्तावेज दिए जाने के आंकडे कितने विस्व्श्नीय है यह लोगो को पटवारियो तःसिलो जिला कार्यालयों के चक्कर काटते देख हो जाती है,

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