सोमवार, 5 मई 2008

दुर्ग की धरोहर

कुछ बाते अपनों की .......
दूर्ग ; सिर्फ़ एक शहर का नाम नही है। दुर्ग की पहचान इतिहास मे दर्ज क्यो है, क्यो हम अतीत से सबक नही लेते, यहाँ की सांस्कृतिक पहचान को क्यो नही हम वापस ला सकते, पुराना मध्यप्रदेश हो या देहली की सड़क , दुर्ग सबके लिए जाना माना नाम है, दुर्ग शहर ने आजादी के संघर्ष मे अऔर् आजाद भारत मे अपनी अलग उपस्थिति दर्ज कराई है ,सांस्कृतिक राजनितिक आथिक सभी तरह से दुर्ग एक अग्रणी शहर है, पुराने मध्यप्रदेश मे शिक्षा मंत्री के रूप मे माननीय श्री मोतीलाल जी वोरा ने दुर्ग का नेत्रत्व करते हुए मुख्यमंत्री तक का सफर इसी दुर्ग शहर से किया था अऔर् आज देश की सबसे बड़ी राजनितिक दल के सिपाहसलाहकार के रूप मे दुर्ग शहर का नाम रोशन कर रहे है ।दुर्ग शहर ही नही पूरे छत्तीसगढ़ को वोराजी ने जो पहचान दी है ,उसे विस्मृत नही किया जा सकता ,उत्तरप्रदेश जैसे राजनितिक रूप से जागृत प्रदेश का राज्यपाल का पद भी उन्होंने सुशोभित किया है ।
अऔर् अब .......
इतिहास का किताब ,अब नही रहेगा कोरा ,
एक नई इबारत लिखने को, तैयार है अरुण वोरा ।

युवा पीढी के साथ ,दुर्ग की जनता की सेवा के लिए अरुण वोरा जी हमेशा संघर्ष करते आए है,बिना किसी लाग लपेट के ,कर्म करने के लिए वे हमेशा तत्पर रहे है, जब लोग छोटे छोटे काम के लिए प्रचार के भूखे रहते है ,वही श्री अरुण वोरा जी ने बड़े बड़े काम बिना किसी ताम झाम के दुर्ग के जनता के हित मे अपनी चिरपरिचित शैली मे करते आए है, अऔर् यही बात दुर्ग की जनता के प्रति उनकी सवेंदनाओ को दिखलाती है।

टिप्पणियाँ: एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]





<< मुख्यपृष्ठ

This page is powered by Blogger. Isn't yours?

सदस्यता लें संदेश [Atom]