मंगलवार, 29 अप्रैल 2008
राहुल जी की छत्तीसगढ़ यात्रा
राहुल जी की प्रदेश की यात्रा
माननीय राहुल गांधी की परेद्श के सुदूर आदिवासी अंचल की यात्रा ने एक बार फिर इंदिरा जी अऔर् राजीव जी की यादे दिला गई ,असली भारत का चेहरा निसंदेह गाँवो मे बसता है ऑउर यह बात ही उन्हें पूरे भारत को जानने समझने उनकी तकलीफो को महसूस करने के लिए शायद प्रेरित किया ,भोले भले आदिवासियों के साथ रात गुजरना उनके खानपान को जानना उनके कमाई के साधन उनकी शासन की
योजनाओ तक पहुँच आदि सब बातो को उनके जानने की उत कुंठा यह साबित करती है की उनका दिल सवेद्नाओ से परिपूर्ण है तथा आज की अवसरवादी राजनीती से अलग कुछ करने का माद्दा रखते है ।
छात्तीसगद दिशा एवम दशाये
छत्तीसगढ़ की जनता यह जानती है कि किनके साथ उनका हित है । विगत वर्षो मे भ्रष्टाचार का जो तांडव चल रहा है वह कभी अऔर् नही दिखी थी । रक्षक ही जब भस्मासुर की तरह भक्षक बन जाए ,आम जनता को आश्वासन का लालीपोप दिखाते रहे ,नेता सिफ लेता रहे ,भर्ती की जगह नीलामी हो, चावल की जगह कंकड़ मिले ,वो भी तौल मे कम ,अपनी गलतियों को छुपाने के लिए केन्द्र पर दोष मढ़ते रहे , तो आम जनता की क्या दशा होगी यह आप समझ सकते है ।
कथनी अऔर् करनी मे क्या अन्तर होता है यह यहाँ की जनता अच्छी तरह समझ गई है। आदिवासियों को गाय देने की योजना हो या पादुका वितरण की , दाल भात केन्द्र का क्या हाल हुआ आप सबके निगाहों मे है ।
माननीय राहुल गांधी की परेद्श के सुदूर आदिवासी अंचल की यात्रा ने एक बार फिर इंदिरा जी अऔर् राजीव जी की यादे दिला गई ,असली भारत का चेहरा निसंदेह गाँवो मे बसता है ऑउर यह बात ही उन्हें पूरे भारत को जानने समझने उनकी तकलीफो को महसूस करने के लिए शायद प्रेरित किया ,भोले भले आदिवासियों के साथ रात गुजरना उनके खानपान को जानना उनके कमाई के साधन उनकी शासन की
योजनाओ तक पहुँच आदि सब बातो को उनके जानने की उत कुंठा यह साबित करती है की उनका दिल सवेद्नाओ से परिपूर्ण है तथा आज की अवसरवादी राजनीती से अलग कुछ करने का माद्दा रखते है ।
छात्तीसगद दिशा एवम दशाये
छत्तीसगढ़ की जनता यह जानती है कि किनके साथ उनका हित है । विगत वर्षो मे भ्रष्टाचार का जो तांडव चल रहा है वह कभी अऔर् नही दिखी थी । रक्षक ही जब भस्मासुर की तरह भक्षक बन जाए ,आम जनता को आश्वासन का लालीपोप दिखाते रहे ,नेता सिफ लेता रहे ,भर्ती की जगह नीलामी हो, चावल की जगह कंकड़ मिले ,वो भी तौल मे कम ,अपनी गलतियों को छुपाने के लिए केन्द्र पर दोष मढ़ते रहे , तो आम जनता की क्या दशा होगी यह आप समझ सकते है ।
कथनी अऔर् करनी मे क्या अन्तर होता है यह यहाँ की जनता अच्छी तरह समझ गई है। आदिवासियों को गाय देने की योजना हो या पादुका वितरण की , दाल भात केन्द्र का क्या हाल हुआ आप सबके निगाहों मे है ।
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